World Typewriter Day 2020 : जयपुर के इस घर में मौजूद हैं कई दुर्लभ ‘टाइपराईटर’ लिम्का बुक में दर्ज है नाम

World Typewriter Day 2020 : जयपुर के इस घर में मौजूद हैं कई दुर्लभ ‘टाइपराईटर’ लिम्का बुक में दर्ज है नाम

आज हर कोई व्यक्ति टाइपराईटर के बारे में जानता है। प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के पश्चात इंसान की सोच ने शायद इस टाइपराईटर मशीन को जन्म दिया। बता दें कि सन् 1868 में दुनिया में पहली बार इस मशीन का व्यावसायिक तौर पर उपयोग शुरू हुआ। शनै शनै इसमें बदलाव व नए तरीके खोजते हुए मनुष्य ने इसे एक जीवन की आवश्यक उपयोगी मशीन बना दिया। कार्यालयों में भारी भरकम टाइपराईटर मशीनों ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि इन मशीनों को सुंदर एवं आसान कैसे बनाया जाए।

सन् 1973 में भारत ने अपना पहला व्यावसायिक टाइपराईटर बनाया। हालांकि सन् 1896 में भारत में टाइपराईटर आ चुका था और सन् 1955 में रेमिंगटन ने कोलकाता के हावड़ा में अपना पहला कारखाना स्थापित कर दिया था। सन् 1975 में यह भारत में नौकरी पाने का एक आसान जरिया बन चुका था। इसके लिए 10वीं कक्षा के साथ बस टाइपिंग आना जरूरी था। यही कारण था कि 80 के दशक में टाइपिंग इंस्टिट्यूट्स की भरमार हो गई। इसने नौकरियों को आसान बना दिया था। आगे चलकर यह एक महज इत्तेफाक न होकर सत्यता हो गई कि टाइपराईटर मशीन रोजी-रोटी का एक जरूरी माध्यम बन गई।

ये है खासियत :

आज के कंम्प्यूटर युग में किसी दस्तावेज में कोई भी अपनी मर्जी से हेरफेर कर सकता है। किंतु टाइपराईटर के दस्तावेज में कुछ भी हेराफेरी नहीं की जा सकती है। इसीलिए विकसित देशों ने अपने सरकारी व गुप्त दस्तावेजों को टाइपराईटर के माध्यम से टाइप कराकर रखा हुआ है। इसीलिए बंद हो चुकी ये मशीनें रूस और जापान में सन् 2010 के बाद फिर से बनने लगी हैं।

यूं बन गए जयपुर के कलेक्टर :

जयपुर के निर्मल पारीक जिन्हें लोग अब ‘कलेक्टर’ के नाम से भी पहचानने लगे हैं। उनकी यूनिक वस्तुओं को सहेजने की आदत के चलते अब उनके घर ने ही एक ‘संग्रहालय’ का रूप ले लिया है। जहां अनेकों नायाब वस्तुओं का खजाना देखने को मिल जाएगा। इन्हीं में से एक कलेक्शन है ‘टाइपराईटर्स’ का।

बता दें ​कि निर्मल के इस नायाब कलेक्शन में करीब 150 टाइपराईटर्स मौजूद हैं। पिछले साल 2019 में इनका नाम ‘लिम्का बुक रिकॉर्ड’ में दर्ज किया जा चुका है। इनके कलेक्शन में सबसे पुराना टाइपराईटर 1935-40 के बीच का है। मजे की बात है कि ये सभी टाइपराईटर आज भी चालू कंडीशन में हैं। इनमें 1935 का एक टाइपराईटर दूसरे विश्वयुद्ध का है। जो कि नॉइजलैश है। यानि इस पर टाइप करने के दौरान किसी भी प्रकार की आवाज नहीं होती है। इन टाइपराईटर्स में सबसे वजनी 29 किलो का है तो वहीं सबसे हल्का करीब 2 किलो का भी है। ये टाइपराईटर कई भाषाओं में मौजूद हैं जिनमें हिंदी, अंग्रेजी के अलावा गुरुमुखी, गुजराती और अरबी मुख्य हैं।

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