ये युवा साइंटिस्ट ड्रोन बनाने में 80 बार असफल रहा था, अब DRDO के लिए करना चाहता है काम

ये युवा साइंटिस्ट ड्रोन बनाने में 80 बार असफल रहा था, अब DRDO के लिए करना चाहता है काम

– 87 देशों से मिल चुका है जॉब का निमंत्रण..

आज से करीब 4-5 साल पहले ड्रोन बनाना और वो भी इलेक्ट्रॉनिक्स के कचरे से.. बच्चों का खेल नहीं था, लेकिन ये कारनामा महज 16 साल के एन एम प्रताप ने कर दिखाया था। कर्नाटक के एक छोटे से गांव के इस युवक ने जब ड्रोन बनाकर उड़ाया तो पूरा गांव देखने के लिए इकट्ठा हो गया था। आज 21 साल के प्रताप करीब 600 ड्रोन बना चुके हैं। दुनिया भर के करीब 87 देशों से प्रताप को नौकरी का निमंत्रण मिल चुका है। खबर है कि वह DRDO में ड्रोन्स पर रिसर्च का काम करना चाहते हैं।

पढ़ाई भी रह गई अधूरी :

दरअसल स्कूल से आते वक्त रास्ते में साइबर कैफे से अंतरिक्ष एवं उसमें उड़ने वाले वि​मानों के बारे में जानकारी इकट्ठा करना प्रताप का एक नियम सा बन गया था। ऐसे में कुछ वैज्ञानिकों के नाम भी पता चल गए थे। सोचा क्यों न सीधे उन्हीं से बात कर ली जाए, लेकिन ये नहीं पता था कि एक वैज्ञानिक से बात कैसे की जाती है? ई-मेल में टूटी फूटी अंग्रेजी लिखकर भेज दिया करते थे। मगर जबाव नहीं आता था।

कर्नाटक के मांड्या के गरीब किसान परिवार में जन्में प्रताप को बचपन से ही इलेक्ट्रॉनिक्स में रुचि थी। इसलिए 12वीं करने के बाद इंजीनियरिंग करना चाहते थे, लेकिन उतने पैसे नहीं थे। सोचा बीएससी कर ली जाए। मैसूर के जेएसएस कॉलेज में ​ए​डमिशन ले लिया।

हॉस्टल में रहते हुए सीखी कंप्यूटर की भाषा :

प्रताप ने बीएएसी के दौरान हॉस्टल में कंप्यूटर की कई भाषाएं सीख ली थीं। यहां उन्होंने इंटरनेट की मदद से कम्प्यूटर लैंग्वेज C, C++, java, Python आदि को सीख लिया था।

उसके बाद उन्होंने ड्रोन बनाने के बारे में सोचा और इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान पर जो कचरा रहता था, उसमें से वो कुछ चीजें निकालकर ले आते थे। कुछ सामान कबाड़ी के यहां से ले लेते थे। करीब 80 बार वह ड्रोन बनाने में असफल रहे, लेकिन हार नहीं मानी। अंत में जब सफलता हाथ लगी तो देखते रह गए।

जापान में मिला पहला स्थान :

सर्वप्रथम उन्होंने वह ड्रोन IIT Delhi में हो रही एक प्रतिस्पर्धा में रखा, जहां उन्हें दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। यहीं से पता चला कि जापान में भी एक इसी तरह की ड्रोन प्रतियोगिता आयोजित होने वाली है। लेकिन इसमें एक समस्या थी जो प्रताप के आड़े आने वाली थी और वो थी पैसों का इंतजाम।
आखिरकार जैसे तैसे उसका भी इंतजाम हो गया और जापान पहुंच गए।

इस प्रतियोगिता में कई देशों के स्टूडेंट्स शामिल हुए थे। प्रतियोगिता शुरू हुई और इसमें पहले ग्रेड के आधार पर ड्रोन्स की घोषणा की गई। इसमें प्रताप को नाम नहीं आया। उन्हें बड़ी निराशा हुई। थोड़ी देर बाद पता चला कि अभी टॉप 10 की घोषणा होना बाकी है तो वो हॉल में रुक गए। एक एक कर सबके नाम आ लिए अंत में 1 नंबर की घोषणा का समय था। जैसे ही नाम अनाउंस हुआ ‘प्रताप…’ तो आंखों में आंसू आ गए। इसमें उन्हें 10 हजार डॉलर पुरस्कार के रूप में प्रा​प्त हुए थे। वहीं फ्रांस की ओर से प्रताप को एक जॉब का ऑफर दिया गया था, लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया

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