अब नहीं रहा वो अभिनय का ‘मदारी’ ‘याको जवाब को देगो दद्दा’ जैसे डायलॉग छोड़ गए..

अब नहीं रहा वो अभिनय का ‘मदारी’ ‘याको जवाब को देगो दद्दा’ जैसे डायलॉग छोड़ गए..

इरफान के जीवन से जुड़ी हरेक बात जो आप जानना चाहते हैं..

फिल्मी जगत ने यूं तो कई पड़ाव झेले हैं मगर न जाने ये पड़ाव इतना भारी क्यों लग रहा है। ये प्रश्न आज न जाने दुनिया में कितने ही प्रसंशकों के मन में कौंध रहा होगा। कुछ तो बात रही होगी राजस्थान की सौंधी मिट्टी में जन्में इस अभिनय के मदारी की। जी हां, अभिनय जगत के दिग्गज कलाकार जिसने अपने अभिनय से देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को कायल बना दिया था। अभिनय के ऐसे पद्मश्री इरफान खान आज इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए विदा हो गए। और मन को गुनगुनाता छोड़ गए- मैंने दिल से कहा, ढूंढ़ लाना खुशी, नासमझ लाया गम, तो गम ही सही….!

ये हो गई थी समस्या..

53 वर्षीय इरफान मूलत: राजस्थान के जयपुर के निवासी थे। दो साल पहले उन्हें न्यूरो इंडो क्राइन कैंसर हो गया था। जिसका काफी दिन तक विदेश इंग्लैंड में इलाज भी चला और आखिर में वह ठीक होकर वापस घर भी आ गए थे। इसके बाद उन्होंने अपनी अधूरी फिल्मों को पूरा करना भी शुरू कर दिया था। मंगलवार को खबर मिली थी कि अचानक उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई। जिसके चलते उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। रिपोर्ट्स के मुताबि​क इन​ दिनों इरफान पेट की समस्या से जूझ रहे थे। बताया जा रहा है कि उन्हें कोलन इन्फैक्शन हुआ था।

4 दिन पहले मां का इंतकाल..

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4 दिन पहले 25 अप्रैल को ही उनकी मां सयीदा बेगम का इंतकाल हुआ था। वह 95 साल की थीं और टोंक के नबाव खानदान से ताल्लुक रखती थीं।​बीमारी और कोरोना लॉकडाउन के चलते वह अपनी मां के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सके थे। कुछेक मीडिया खबरों का ये भी कहना था​ कि उस समय इमरान विदेश में थे।

और ये फिल्म आखिरी बन गई..

इरफान खान की तबीयत 2017 में खराब हुई थी। और जब उन्होंने जांच करवाई तो उन्हें न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर के बारे पता चला। यह एक दुर्लभ बीमारी है, जिस पर अभी तक कोई बड़े शोध नहीं हुए हैं। लेकिन इरफान ने हार नहीं मानी और दे दी चुनौती जीत की। इंग्लैंड में चले लंबे समय के इलाज के बाद उन्होंने ये जंग तो जीत ली मगर खुदा को कुछ और ही मंजूर था। ठीक होने के बाद इरफान मुंबई आ गए और अपनी मूवी इंगलिश मीडियम की शूटिंग में बिजी हो गए।

बताया जा रहा है कि उन्हें इस बीच कोई कीमो थैरेपी करवानी थी, लेकिन शूटिंग के चलते वह करवा नहीं पाए थे। और यही परेशानी धीरे-धीरे बढ़ती चली गई। होली से उनकी तबियत जब ज्यादा खराब होने लगी तब उन्होंने इस ओर ध्यान दिया। मगर मंगलवार को अचानक जब उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ी तब तक बहुत देर हो चुकी थी। और यही फिल्म उनकी आखिरी फिल्म बनकर रह गई।

रह रह कर याद आ रहे ये डायलॉग्स..

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याको जवाब को देगो दद्दा.. बीहड़ में बागी मिलते हैं, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में.. ये शहर हमें जितना देता है उससे कहीं ज्यादा ले लेता है.. आदमी जितना बड़ा होता है, उसके छुपने की जगह उतनी ही कम होती है.. डेथ और शिट किसी को, कहीं भी, कभी भी आ सकती है.. शराफत की दुनिया का किस्‍सा ही खत्म, अब जैसी दुनिया वैसे हम। ऐसे न जाने कितने ही डायलॉग हैं जिनके जरिए वह हमेशा अपने फैंस के दिलोदिमाग में छाए रहेंगे।

ये फिल्में जो याद रहेंगी..

इरफान खान की मशहूर फिल्मों में लाइफ ऑफ पाई, स्लमडॉग मिलेनियर, द अमेजिंग स्पाइडर मैन जुरासिक वर्ल्ड, पान सिंह तोमर, मदारी, मकबूल, द लंच बॉक्स, हासिल, द नेमसेक, हिंदी मीडियम, तलवार और पीकू आदि फिल्में हमेशा याद रहेंगी। और इनके ​जरिए इरफान जीवनपर्यंत अपने फैंस के दिलों में जीवंत रहेंगे।

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